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आज की मशीनी जिंदगी

अब इस माहौल से अजनबीपन महसूस होने लगा है,
आज की मशीनी दौड़ में अपना आप खोने लगा है,

सुबह जल्दी-जल्दी उठकर काम पर जाना होता है,
वो वक्त नहीं मिलता जो अपनों संग बिताना होता है,

कामकाज में ऐसे उलझे कि जिंदगी जीना भूल गए
मार्च क्लोजिंग तो याद रही, सावन महीना भूल गए

छोटी छोटी बातों पर अब तो रिश्ते बिखरने लगे हैं,
हल्के से मज़ाक भी अब तो तंज जैसे दिखने लगे हैं,

एसी की ठंडी हवाओं से अब दम सा घुटने लगा है,
सब पा कर भी कुछ है जो शायद पीछे छूटने लगा है।


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3 Comments

Kumawat Meenakshi Meera

05-Jun-2021 07:31 PM

Kamkaji logo ka Dard...nice

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Apeksha Mittal

05-Jun-2021 12:12 PM

बहुत अच्छी रचना

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Ravi Goyal

05-Jun-2021 12:10 PM

Bahut khoobsurat rachna 😊🙏

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